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डे टू डे लाइफ में गलियों का प्रयोग इस कदर बढ़ गया है
की अब हिंदी के वाक्य ही बदल गए हैं।
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उदाहरण
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पहले : इस काम को मत करो, रिस्क है
आजकल : अबे बोला न रहने दे , गांड मर जाएगी।
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पहले : अरे यार डर लगता है, कही फ़ैल न हो जाऊ !
आजकल : यार गांड फटी पड़ी है, रिजल्ट की माँ न चुद
जाये !
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पहले : ये तो होना ही था, किस्मत ही ख़राब है।
आजकल : चुद गयी। जब किस्मत में हों लोडे, तो कैसे
मिले पकोड़े ?
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पहले : भाई गाड़ी धीरे चला, रोड ख़राब है।
आजकल : अबे रोड की माँ चुदी पड़ी है, तू
गाड़ी की क्यों चोद रहा है।
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पहले : भाई मैंने बोला था न की ये काम मत करो ,
रिस्क है।
आजकल : बस मरवा ली , मैंने तो पहले
ही कहा था की उड़ता तीर गांड में मत ले।
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पहले : मुझे मत समझा, मुझे सब पता है।
आजकल : गांडू, बाप को चोदना मत सिखा।
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पहले : क्या बात है भाई, उदास कैसे है ?
आजकल : क्या है बे , गांड सा मुह क्यों बना रखा है ?
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पहले : बार बार परेशान मत कर।
आजकल : बार बार गांड में गांड में
ऊँगली करना जरूरी है ?
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पहले : दोनों जिगरी दोस्त हैं।
आजकल : अबे दोनों एक गांड से हगते हैं।
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पहले : बेटा कितना भी बड़ा हो जाये, रहेगा बाप से
छोटा ही।
आजकल : आंड कितने भी बड़े हों , रहेंगे तो लण्ड के
नीचे ही।
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पहले : क्या बात है, बॉस के आगे पीछे बहुत घूम रहा है ?
आजकल : क्या बात है बे, बॉस के बहुत आंड
उठा रहा है ?
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पहले : किसी काम को करने के लिए, खुद में सामर्थ्य
होना जरूरी है।
आजकल : गांड मरवाने का शौक हो तो तेल चटाई
साथ रखनी चाहिए।
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पहले : मूर्ख की दोस्ती अच्छी नहीं होती।
आजकल : गांडू की दोस्ती, जी का जंजाल
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पहले : लड़की तो मस्त है, पर तुझसे नहीं पटेगी।
आजकल : अबे रहने दे, तेरे जैसों की तो चूचों से गांड
मार देती है वो।
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पहले : तू मेरा बाल भी बांका नहीं कर पायेगा।
आजकल : तेरी गांड में जितना जोर है ना लगा ले , तू
मेरी झांट का बाल भी नहीं उखाड़ सकता।
Posted via Blogaway
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