संता सिंह सुहागरात पर लजाती-सकुचाती पत्नी के
पास पहुँचे, और प्यार से बोले- जानेमन, अपनी सूरत के
दीदार तो करा दो, बहुत देर से तरस रहा हूँ, तुम्हें
निहारने के लिए…
पत्नी ने भी शर्माते हुए घूंघट को कसकर पकड़
लिया और ना में गर्दन हिलाई…
संता ने प्यार से घूंघट को थामा और उसे उठाने
लगा कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई…
यह क्या? खटखटाने की आवाज़ सुनते
ही पत्नी उठी और झट से खिड़की से बाहर कूद गई…
संता हैरान रह गया, लेकिन उसने पहले जाकर लगातार
बजता दरवाज़ा खोला…
देखा कि भाभी हाथ में एक ट्रे लिए खड़ी थीं, जिस
पर दूध से भरे दो गिलास रखे थे…
भाभी मुस्कुराईं और प्यार से बोलीं- लल्ला जी,
दुल्हन को दूध ज़रूर पिला देना…
संता ने भी हंसते हुए जवाब दिया- जी भाभी…
लेकिन उनका सारा ध्यान अपनी पत्नी की हरकत पर
था तो तुरंत ही भाभी को विदा कर दिया और अंदर
आकर बोले- जानेमन, अंदर आ जाओ… भाभी थीं, दूध
देने आई थीं…
इतना सुनकर पत्नी भी खिड़की से अंदर आ गई।
तो संता ने हैरानी-भरे स्वर में पूछा- मेरी जान,
शर्माना तो समझ में आता है, लेकिन तुम खिड़की से
बाहर क्यों कूद गई थीं…?
पत्नी ने तपाक से जवाब दिया, “अजी कुछ नहीं जी !
मुझे लगा कि छापा पड़ गया है !
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